मंगलवार, 4 अगस्त 2009

वफ़ा बार-बार करते हैं


दर्द से रोशनी,गम को बहार करते हैं।

फूल से दोस्ती काँटों को प्यार करते हैं।

लोग ऐसे भी हैं गैरों की इख्तियारी में

ज़िन्दगी रहन है, सांसें उधार करते हैं।

उनके खामोश लबों का है नाम मजबूरी,

जो मेरी बे-बसी पे ऐतवार करते हैं।

कोई मोका तो दे हम को भी इंतजारी का,

हम भी वो शख्स हैं जो इंतज़ार करते हैं।

वे-वफाई 'महेश' रस्म है ज़माने की,

और हम हैं की वफ़ा बार-बार करते हैं।


-राम प्रजापति

समय जगत,भोपाल
किसी की भीड़ में तकदीर खो जाए तो क्या कीजे।
हमारी जिंदगी को देखकर यूं न मजा लीजे।।
जमाना मारता है ठोकरें रस्ते के पत्थर को,
वो हीरा धूल की चादर लेपेटे है, उठा लीजे।।
-महेश सोनी